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ek aisi ghatna jo sach bhi ho sakti hai -एक ऐसी घटना जो सच भी हो सकती हे !

          आज की ये स्टोरी आप को सोच ने पर मजबूर कर देगी की हकीकत में ऐसा सच में हो सकता हे या ये सिर्फ एक केवल कल्पना के आलावा और कुछ नहीं हे           ये कथा १ गोविंद नाम के लड़के की हे गोविंद को बचपन से हे ध्यान योग में बहोत रूचि थी जिस उम्र में बच्चे खेलते थे उस समय गोविंद स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस जैसे महान सिद्ध पुरुष के कहानिया पढता था और दूसरी और वो पढाई में भी बहोत अच्छा था गोविंद का पूरा बचपन महान पुरुषो के पुस्तक पढ़ कर ही बिता         गोविंद ने अनेको महान पुरुषो की कहानी पढ़ी थे पर स्वामी विवेकानंद की १ ही पुस्तक उसने कहियो बार पढ़ ली थी और उससे गोविंद के मन और मगज में स्वामी विवेकानंद जैसी शक्ति पाने की इच्छा आ गयी और उसके लिए सिर्फ १ ही रास्ता था और वो था ध्यान योग का गोविन्द ध्यान योग से किस प्रकार की शक्ति मिल सकती हे उसके बारे में तो वो बचपन से हे जानता था अब वो 19 साल का हो गया था स्कूल के तरह कॉलेज में भी पढ़ने में वो बहोत अच्छा था और अब वो ध्यान योग में भी ज़्यादा समय देता था जिससे वो ठीक से खाना भी खाता नहीं था और उससे गोविंद के माता पिता

chinta ya abhimaan -चिंता या अभिमान

           आज की कहानी हम सभी पे आधारित हे हम सब ने कभी न कभी इन दो बातो को अपने जीवन में एक समान महत्व दिया हे आज इस कहानी ने से आपको सोचना हे की चिंता या अभिमान इन दोनों में से बड़ा कौन हे?              हम सभी हर वक्त कोई चिंता या सोच में रेह्ते हे आज की मेरी ये स्टोरी भी कुछ इस प्रकार की ही हे, ये स्टोरी कॉलेज में पढ़ते एक लड़के के है उसका नाम विवेक था वो पढ़ने में बोहत अच्छा था सब की हमेशा मदद करता पढाई में और  इस वजह से एक दिन उसे अभिमान आ गया था की मुझसे आगे कोई नहीं आ सकता अब वो दुसरो को कमज़ोर समज ने लगा उसके दोस्त ने बोला की १ दिन तुझे भी कोई हरा देगा तुजसे भी आगे कोई निकल जायेगा हम इंसान का सवभाव हे की नकारात्मक बात पे जल्दी सोचने लगते हे और विवेक के साथ भी ऐसा ही हुवा वो हार से हमेशा से डरता था उसके दिमाग में यही बात चल ने लगी की मुझे कोई हरा देगा १ दिन पर हमेशा जित ने की वजह से उसके अंदर अभिमान आ गया था और इंसान के अंदर जब अभिमान आ जाता हे तो उसे निकल पाना भी मुश्किल हे विवेक ने अपना अभिमान नहीं छोड़ा परीक्षा नज़दीक़ आ रही थी पर वो बहार घूमने जाने लगा पढाई से जैसे कोषों