१ बार की कहानी हे मिलणा नाम का १ गाँव था वहा शिवोच नाम का १ लड़का रहता था वो पढाई लिखाई में बहोत अच्छा था इतना अच्छा की कोई भी पुस्तक एक बार पढता तो उसे याद रह जाता था मानो साक्षात् सरस्वती देवी का उस पे आशीर्वाद हो शिवोच के घर की हालत कुछ खास नहीं थी उसके माता पिता गाँव में खेडूत थे और उनपे बहोत बड़ा क़र्ज़ था जो वो पूरी ज़िंदगीभर में भी चूका नहीं सकते थे और १ दिन गाँव बहोत बारिश हुवी और सारा अनाज पानी में बेह गया ये सघमा शिवोच के पिता बर्दाश नहीं कर पाए और उनकी दिल के दौरे से उनकी मोत हो गयी थोड़े दिन बाद शिवोच की माता की भी मृत्यु हो जाती हे।
अब शिवोच का गाँव में कोई नहीं था खाना खाने के लिए और स्कूल की फीस चूका ने के लिए वो गाँव में ही कुछ छोटा मोटा काम करता पर उसे वेतन बहोत ही काम मिलता किसी दिन तो उसे भूखा भी सोना पड़ता था बहोत ही कम आयु में उसे पैसे कमाने की अड़चन आ गयी थी पैसे की कमी की वजह से उसकी पढाई भी छूट गयी और वो जल्दी से ज़्यादा पैसा कमाने के बारे में सोचने लगा। और वो इसी सोच के साथ गलत रास्ते पे निकल गया उसे लग ने लगा की चोरी से आसानी से जल्द और ज़्यादा पैसे कमा सकते हे और उसने पैसे कमाने के लिए यही रास्ता ठीक समजा तब शिवोच को ये बात समझाने वाला कोई भी नहीं था की वो जिस रास्ते में जा रहा हे वो गलत हे।
दूसरे दिन शिवोच गाँव में सभी घरो में से चोरी करता ये सब कुछ माँ सरस्वती देख रही थी और उन्हों ने सोचा की में शिवोच को मेहनत और कर्म का पाठ पढ़ाऊंगी माता सरस्वती ने एक शिक्षिका का रुप धारण कर के धरती लोक पे आयी और शिवोच के गाँव में अपनी दिव्य शक्ति से १ घर का निर्माण किया और वहा माँ सरस्वती रेहने लगे उनको १ बात पता थी की एक दिन शिवोच यहाँ भी चोरी कर ने आएगा। और दूसरे ही दिन शिवोच ने माँ सरस्वती के वहा चोरी कर ने चला गया और वहा माँ सरस्वती ने उसे रंगे हाथो पकड़ा और दाट ने की बजह शिवोच को अपने गले से लगा लिया शिवोच की आँख में आँसू आ गये क्युकी उसे अपनी माँ की याद आ गयी थी और माता तो ममता की सागर होती हे उनमें बहोत भावनाये होती हे शिवोच की परिस्थिति देख के माँ सरस्वती भी अपने आँसू रोक नहीं पायी। माता ने कहा अब से में तुम्हे संसार में सही तरीके से जीने का मार्ग देखाउगी, कर्म के बारे मे पाठ पढ़ाऊंगी और ये भी कहूँगी की किस प्रकार हम परमात्मा से भेट कर सकते हे।
दूसरे दिन से माँ का लक्ष्य अब सिर्फ शिवोच को श्रेष्ठ इंसान बना ने का था। माँ ने उसे गीता,ध्यान गणितशास्त्र ज्योतिषशास्त्र,संस्कृत,श्लोक ऐसे अनेको ज्ञान शिवोच को दिये शिवोच पढ़ ने में तो अच्छा था ही और माँ की कृपा की वजह से भी उसे बहोत कम उम्र में सब ज्ञान की प्राप्ति भी हो गयी। माता शिवोच को अपने बेटे की तरह ही उसे प्यार भी करती और अब कैसे ध्यान के ज़रिये वो ब्रह्मांड में घूम सकता हे वो शिक्षा भी उसकी पूरी हो चुकी थी। शिवोच ने अपने मन पर सम्पूर्ण विजय प्राप्त कर ली थी और ऐसा कहा जाता हे की जो इंसान अपने मन को अपने वश में कर ले उसे संसार की कोई मोह-माया लुभा नहीं सकती वो परम शक्तिशाली बन जाता हे और भगवान को पाने के योग्य हो जाता हे। माँ सरस्वती का पृथ्वी लोक पे आने का उपदेश अब ख़तम हो गया था। ब्रह्मा ने माँ सरस्वती को कहा की अब तुम्हारा कर्तव्य पूर्ण हो चूका हे माँ सरस्वती ने शिवोच को अपना पुत्र मान लिया था वो उसे छोड़ कर जाना चाहती नहीं थी।
माँ ने शिवोच को अपने कक्ष में बुलाया और कहा पुत्र अब मुझे जाना होगा जिस लक्ष्य से में यहाँ आयी थी वो अब पूर्ण हो चूका हे। शिवोच ने कहा माँ आप कहा जा रही हो एक माता तो मुझे छोड़ कर जा चुकी हे अब दूसरी माँ के जाने का दुःख में सहन नहीं कर पाउँगा। माँ ने अपना वास्तविक स्वरुप धारण कर लिया शिवोच माँ सरस्वती को साक्षात् अपने सामने देख कर चौक गया और माँ के पैर पे गिर पड़ा और कहा की आप ने मेरी माता का स्थान लिया हे में आपको कही नहीं जाने दे सकता। माँ ने शिवोच को बहोत समझाया की मेरा जाना अब ज़रुरी हे, माँ के बहोत समझाने के बावजूद शीरोच माँ को जाने नहीं दे रहा था तभी ब्रह्मा वहा प्रगट हुवे और शिवोच को कहा हे पुत्र माँ सरस्वती भी तुम्हे छोड़ कर जाना नहीं चाहती पर वो विवश हे उन्हें जाना ही पड़ेगा पर में तुम्हे वरदान देता हु की जब भी तुम माँ सरस्वती को अपने सच्चे मन से याद करोगे वो तुम्हारे पास होगी। इस वरदान से शिवोच खुश हो गया और माँ फिर अपने धाम चली गयी।
अब शिवोच का गाँव में कोई नहीं था खाना खाने के लिए और स्कूल की फीस चूका ने के लिए वो गाँव में ही कुछ छोटा मोटा काम करता पर उसे वेतन बहोत ही काम मिलता किसी दिन तो उसे भूखा भी सोना पड़ता था बहोत ही कम आयु में उसे पैसे कमाने की अड़चन आ गयी थी पैसे की कमी की वजह से उसकी पढाई भी छूट गयी और वो जल्दी से ज़्यादा पैसा कमाने के बारे में सोचने लगा। और वो इसी सोच के साथ गलत रास्ते पे निकल गया उसे लग ने लगा की चोरी से आसानी से जल्द और ज़्यादा पैसे कमा सकते हे और उसने पैसे कमाने के लिए यही रास्ता ठीक समजा तब शिवोच को ये बात समझाने वाला कोई भी नहीं था की वो जिस रास्ते में जा रहा हे वो गलत हे।
दूसरे दिन शिवोच गाँव में सभी घरो में से चोरी करता ये सब कुछ माँ सरस्वती देख रही थी और उन्हों ने सोचा की में शिवोच को मेहनत और कर्म का पाठ पढ़ाऊंगी माता सरस्वती ने एक शिक्षिका का रुप धारण कर के धरती लोक पे आयी और शिवोच के गाँव में अपनी दिव्य शक्ति से १ घर का निर्माण किया और वहा माँ सरस्वती रेहने लगे उनको १ बात पता थी की एक दिन शिवोच यहाँ भी चोरी कर ने आएगा। और दूसरे ही दिन शिवोच ने माँ सरस्वती के वहा चोरी कर ने चला गया और वहा माँ सरस्वती ने उसे रंगे हाथो पकड़ा और दाट ने की बजह शिवोच को अपने गले से लगा लिया शिवोच की आँख में आँसू आ गये क्युकी उसे अपनी माँ की याद आ गयी थी और माता तो ममता की सागर होती हे उनमें बहोत भावनाये होती हे शिवोच की परिस्थिति देख के माँ सरस्वती भी अपने आँसू रोक नहीं पायी। माता ने कहा अब से में तुम्हे संसार में सही तरीके से जीने का मार्ग देखाउगी, कर्म के बारे मे पाठ पढ़ाऊंगी और ये भी कहूँगी की किस प्रकार हम परमात्मा से भेट कर सकते हे।
दूसरे दिन से माँ का लक्ष्य अब सिर्फ शिवोच को श्रेष्ठ इंसान बना ने का था। माँ ने उसे गीता,ध्यान गणितशास्त्र ज्योतिषशास्त्र,संस्कृत,श्लोक ऐसे अनेको ज्ञान शिवोच को दिये शिवोच पढ़ ने में तो अच्छा था ही और माँ की कृपा की वजह से भी उसे बहोत कम उम्र में सब ज्ञान की प्राप्ति भी हो गयी। माता शिवोच को अपने बेटे की तरह ही उसे प्यार भी करती और अब कैसे ध्यान के ज़रिये वो ब्रह्मांड में घूम सकता हे वो शिक्षा भी उसकी पूरी हो चुकी थी। शिवोच ने अपने मन पर सम्पूर्ण विजय प्राप्त कर ली थी और ऐसा कहा जाता हे की जो इंसान अपने मन को अपने वश में कर ले उसे संसार की कोई मोह-माया लुभा नहीं सकती वो परम शक्तिशाली बन जाता हे और भगवान को पाने के योग्य हो जाता हे। माँ सरस्वती का पृथ्वी लोक पे आने का उपदेश अब ख़तम हो गया था। ब्रह्मा ने माँ सरस्वती को कहा की अब तुम्हारा कर्तव्य पूर्ण हो चूका हे माँ सरस्वती ने शिवोच को अपना पुत्र मान लिया था वो उसे छोड़ कर जाना चाहती नहीं थी।
माँ ने शिवोच को अपने कक्ष में बुलाया और कहा पुत्र अब मुझे जाना होगा जिस लक्ष्य से में यहाँ आयी थी वो अब पूर्ण हो चूका हे। शिवोच ने कहा माँ आप कहा जा रही हो एक माता तो मुझे छोड़ कर जा चुकी हे अब दूसरी माँ के जाने का दुःख में सहन नहीं कर पाउँगा। माँ ने अपना वास्तविक स्वरुप धारण कर लिया शिवोच माँ सरस्वती को साक्षात् अपने सामने देख कर चौक गया और माँ के पैर पे गिर पड़ा और कहा की आप ने मेरी माता का स्थान लिया हे में आपको कही नहीं जाने दे सकता। माँ ने शिवोच को बहोत समझाया की मेरा जाना अब ज़रुरी हे, माँ के बहोत समझाने के बावजूद शीरोच माँ को जाने नहीं दे रहा था तभी ब्रह्मा वहा प्रगट हुवे और शिवोच को कहा हे पुत्र माँ सरस्वती भी तुम्हे छोड़ कर जाना नहीं चाहती पर वो विवश हे उन्हें जाना ही पड़ेगा पर में तुम्हे वरदान देता हु की जब भी तुम माँ सरस्वती को अपने सच्चे मन से याद करोगे वो तुम्हारे पास होगी। इस वरदान से शिवोच खुश हो गया और माँ फिर अपने धाम चली गयी।
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